घरेलू हिंसा की श्रेणी में आनेवाले जुर्म, आईपीसी की धारा, सजा, और प्रावधान विस्तार से जानें

टीएनपी डेस्क(TNP DESK): हमारे देश में 21वीं सदी आते-आते बहुत कुछ बदला, हमारे देश ने इतनी तरक्की कर ली. कि हम चांद तक पहुंच चुके हैं. लेकिन आजतक देश से घरेलू हिंसा के कलंक को नहीं मिटा पाये. देश की महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा का अत्याचार आये दिन होते रहते है. हमे देश के विभिन्न जगहों से टीवी या सोशल मिडिया पर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा देखने को मिलती है. जिसमे कभी दहेज के लिए बहु-बेटियों को जलाकर मार दिया जाता है. तो कही अन्य कारणों से इनकी जिंदगी को मौत से भी ज्यादा बदत्तर बना दिया जाता है. लेकिन ये महिलायें इसको चुपचाप सहती रहती हैं. कभी समाज के इज्जत के डर से तो कभी अपने मां-बाप की परिस्थिति को देखकर अपना मुंह नही खोलती हैं.
महिलाओं में कानून की जानकारी की कमी से बढ़ता है घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा के खिलाफ मुंह ना खोलने की सबसे बड़ी वजह देश में घरेलू हिंसा के कानून की जानकारी की कमी होती है. क्योंकि महिलाओं को इसकी अच्छी जानकारी नहीं होती है. जिसकी वजह से हिंसा करनेवालों का हौसला और भी बढ़ता जाता है. और एक दिन ये दानव महिलाओं को जान से मार देते हैं.
कौन-कौन हिंसा घरेलू हिंसा के तहत आती है
आपको बताये कि यदि शादी के बाद महिला के पति उसके साथ दुर्व्यवहार करता है. मारपीट या अन्य प्रकार शारीरिक या मानशिक शोषण करता है. तो ये घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है. इसके साथ ही महिला के ससुरावाले यदि महिला के साथ दहेज या किसी चीज को लेकर मारपीट करते है. या शारीरिक या मानशिक शोषण करते हैं. तो इसे भी घरेलू हिंसा माना जाता है. इसके साथ ही विवाह जैसे बंधन में बंदने के बाद पति की ओर से महिला को जबरन शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करना, या मारपीट कर अपनी बात को मानने के लिए मजबूर करना हिंसा की श्रेणी में आता है. इसके साथ ही विवाह के बाद एक पार्टनर की ओर से मारपीट या दुर्व्यवहार को प्रकट करने वाला शब्द बोलना हिंसा है. जीवन साथी के साथ दुर्व्यवहार भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है.
घरेलू हिंसा में कितने साल की होती है सजा
आपको बताये कि घरेलू क्रूरता के विरुद्ध पीड़ित के आलावा उसकी तरफ से कोई रिश्तेदार या दोस्त भी शिकायत कर सकता है. घरेलू हिंसा में दोषी पाये जाने पर तीन साल तक की सजा और जुर्माना का प्रावधान है. बता दे कि घरेलू हिंसा एक संगीन और गैर-जमानती अपराध है. इसलिए घरेलू हिंसा अधिनियम और संरक्षण आदेश का उल्लंघन करने पर एक साल तक का कारावास और 20 हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजा का प्रावधान करता है. यदि किसी पीड़ित को मामला थाना दर्ज कराने के बाद डीवी केस वापस लेना हैं. तो इसे वापस नहीं लिया जा सकता है. लेकिन एफआईआर दर्ज होने पर आप कार्यवाही को रद्द करने के लिए आवेदन कर सकते हैं.
घरेलू हिंसा से जुड़े कानून और धाराये.
आपको बताये कि आईपीसी की धारा 498ए ऐसी महिला से संबंधित है. जिसे उसके पति और रिश्तेदारों की ओर से बर्बरता से मारपीट या क्रूरता की जाती है. इस धारा के तहत अपराधी को तीन साल तक की जेल और जुर्माना का प्रावधान है.
2. धारा 304बी, 1860
आईपीसी की धारा 304बी दहेज में हत्या से संबंधित है. इसके तहत यदि किसी महिला की मौत शादी के सात सालों के अंदर जलने, शारीरिक चोट की वजह से या संदिग्ध अवस्था में होती है. तो इसमे लड़की के घरवालों की ओर से सुसरावालों पर आरोप लगाया जाता है. जिसमे ये बात रखी जाती है कि महिला की मौत से कुछ दिन पहले महिला के ससुरालवालों या उसके पति की ओर से दहेज की मांग की गई थी. जिसकी पूर्ती नहीं किये जाने पर महिला को जलाकर या पीट-पीटकर निर्मम हत्या की गई है. ऐसे मामले में महिला की मौत का जिम्मेदार उसके पति या रिश्तेदारों को माना जाता है. जिसमे जुर्म साबित होने पर सात साल की सजा या आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है.
रिपोर्ट- प्रियंका कुमारी.
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